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उत्तरी ध्रुवकी यात्रा


उत्तरी ध्रुव-प्रदेशका समुद्र बहुत गहरा है। पांच-पांच सात-सात सौ गज़ नीचेतक भूमिका कहीं पता नहीं। यदि वहां समुद्र न होता, भूमि होती, तो वहाँकी यात्रा इतनी कठिन न होती। जब जाड़ा ख़ूब पड़ने लगता है तब समुद्र जम जाता है। इसीसे जाड़ोंहीमें यात्रा करना सुभीतेका होता है। गरमियोंमें यात्रा करना जान खतरेमें डालना है। गरमीके दिनोंमें बर्फ गलकर पानी हो जाती है और जहाँ नहीं भी गलती वहाँ इतनी पतली पड़ जाती है कि थोड़ा भी बोझ या दबाव पड़नेपर टूट जाती है।

ध्रुव-प्रदेशमें २३ सितम्बरको सूर्य्य अस्त हो जाता है और २१ मार्चतक अस्त रहता है। इस समय, एक-दो-महीने आगे-पीछे सायङ्कालके सदृश अस्तकाल और अरुणोदय रहता है। अर्थात् उसी तरहका धूमिल प्रकाश रहता है जिस तरहका कि अन्यत्र सायं-प्रातः देखा जाता है। हाँ, बीचके तीन महीनोंमें बिलकुल ही अन्धकार रहता है। तबतक उत्तरी ध्रुवमें जाड़ेका मौसिम समझा जाता है। लोग इसी जाड़े के पिछले भागमें ध्रुव-यात्रा करते हैं। उन्हें सब काम अधिकतर अँधेरेहीमें करना पड़ता है। उस समय उनको घड़ीसे बड़ी सहायता मिलती है। जिस मनुष्यने अंधेरेमें दो-चार दिन भी बिताये हों वही सूर्य्यके प्रकाशका महत्त्व अच्छी तरह समझ सकता है। ध्रुवके आस-पास, स्वच्छ आकाशमें तारोंका प्रकाश भी भयदायक मालूम होता है। हर महीने सिर्फ़ दस-बारह दिन निशानायकके दर्शन होते हैं। इतने दिन वह अस्त नहीं होता; हाँ, घटता-बढ़ता ज़रूर रहता है। वहीं चांदनीमें इधर-उधर घूमना भी खतरेसे खाली