यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६
लेखाञ्जलि

ताप वितरण न करते तो अच्छा होता; क्योंकि हमलोग ऐसे दानका भोग नहीं जानते। रामायणमें लिखा है कि इन्द्र, वरुण, पवन, अग्नि आदिको रावणने अपना दास बना रक्खा था, पर हम इस बातको जानकर भी अजान बने बैठे हैं।

[अगस्त १९२५]