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स्वयंवह-यन्त्र

निम्न-गतिके द्वारा चक्र-भ्रमण कराना ही समस्त स्वयंवह-यन्त्रोंका मूल तत्व है। सत्रहवीं शताब्दीमें हाइगेन्स नामक एक विद्वान्‌ने दोलक (Pendulum) प्रयोग कर क्लाक घड़ीको सच्चा कालमानयन्त्र बनाया। यदि हम प्राचीन आर्योंको बिना दोलककी 'क्लाक' का आविष्कर्ता कहें तो अनुचित नहीं। कौन कह सकता है कि क्लाक-घड़ीका मूल-सूत्र इस देशसे विदेश नहीं गया?*[]

बड़े अफ़सोसकी बात है कि डेढ़ हज़ार वर्ष पहले जिस ज्ञान और जिस प्रयोग-कुशलताकी इस देशमें इतनी प्रचुरता थी उसका क्रमशः विकाश नहीं हुआ। वर्तमान कालमें तो उलटा उसका लोप हो गया है। जल-प्रवाहमें जो शक्ति छिपी है उसे प्राचीन कालके लोग अच्छी तरह जानते थे। परन्तु हमलोग, आधुनिक पाश्चात्य विज्ञानकी सहायता पाकर भी, प्रयोग-कुशल शिल्पी नहीं बन सके। हमारी सुजला भारत-भूमिकी खेती जब सूखने लगती है तब, हा अन्न, हा अन्न, कहकर हमलोग चिल्लाने लगते हैं; विपत्ति-निवारणका कुछ उपाय नहीं करते। हम जानते हैं कि वायु चलती है। परन्तु उसमें जो शक्ति सञ्चित है उससे कार्यसिद्धिका मार्ग हमें नहीं सूझ पड़ता। यदि सूर्य भगवान् हमारे समान अपात्रोंके देशमें इतना


  1. *"He (Waltherus) is also the first astronomer who used clocks moved by weights for the purpose of measuring time. These pieces of mechanism were introduced originally from eastern countries."

    Grant's History of Physical Astronomy