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लेखाञ्जलि


प्राणियोंमें स्त्रीत्व और पुँस्त्व का भेद नहीं होता। सन्तानोत्पादन के लिए वे नर-मादा की योजनाकी अपेक्षा नहीं करते।

अच्छा, तो जब एक अमिवाके दो आमिवा हो जाते हैं तब प्रथम आमिवा क्या नष्ट हो जाता है, अथवा मर जाता है? नहीं, यह बात नहीं। उसका वह अंश अवसन्न नहीं पड़ा रहता। वह अपना नित्य-नैमित्तिक काम भी नहीं बन्द करता। जिस दशामें नया रहता है उसी दशामें पुराना भी। अर्थात् बाप-बेटे तुल्य अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं। बेटेके जुदा होनेकी तैयारी होनेपर बापको कुछ शिथिलता ज़रूर प्राप्त हो जाती है; परन्तु वह निष्क्रिय नहीं हो जाता। कुछ-न-कुछ वह फिर भी किया ही करता है। दोनोंके जुदा-जुदा हो जानेपर तो बाप-बेटे अपने-अपने काममें जी-जानसे लग जाते हैं। इनके इस क्रिया-कलाप को देखकर यह सन्देह होता है कि कहीं ये अमर तो नहीं; क्योंकि इनकी मृत्युका दृश्य विज्ञान-विशारदों के देखनेमें नहीं आया। (सङ्कलित)

[अक्टोबर १९२३]