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दण्ड-देवका आत्म-निवेदन

वयस्कोंको तो इससे भी अधिक यातनाएं भोगनी पड़ती थीं। वे पहले पेड़ोंकी डालोंसे लटका दिये जाते थे। फिर वे खूब पीटे जाते थे। देह लोहू-लोहान हो जानेपर उसपर सर्वत्र लाल मिर्चका चूर्ण मला जाता था। याद रहे, ये सब पुरानी बातें हैं। आजकलकी बातें हम नहीं कहते; क्योंकि हमारे प्रयोगमें यद्यपि इस समय कुछ परिवर्तन हो गया है, तथापि हमारा कार्यक्षेत्र घटा नहीं, बढ़ा ही है।

तुम्हारे एशिया-खण्डमें भी हमारा राज्य दूर-दूरतक फैला रहा है। एशिया कोचक (एशिया माइनर) के यहूदियोंमें, किसी समय, हमारी बड़ी धाक थी। वहाँ हमारा प्रताप बहुत ही प्रबल था। ईसाई-धर्म फैलानेमें सेंटपाल नामक धर्माचार्य्यने बड़े-बड़े अत्याचार सहे हैं। वे ४९ दफ़े कशाहत और ३ दफ़े दण्डाहत हुए थे। बाइबिलमें हमारे प्रयोगका उल्लेख सैकड़ों जगह आया है।

यहूदियोंकी तरह पारसियोंमें भी हमारा विशेष आदर था। क्या धनी, क्या निर्धन सभीकों, यदा-कदा, डण्डोंकी मार सहनी पड़ती थी। यह चाल बहुत समय तक जारी रही। तदनन्तर वह बदल गयी। तब माननीय मनुष्योंके शरीरकी जगह उनके कपड़ोंपर कोड़े लगाये जाने लगे।

चीनमें तो हमारा आधिपत्य एक छोरसे लेकर दूसरे छोरतक फैला हुआ था। ऐसा एक भी अपराधी न था जिसे सज़ा देने में हमारा प्रयोग न होता रहा हो। उच्च राज-कर्म्मचारियोंसे लेकर दीन-दुखी भिखारियोंतकको, अपराध करनेपर, हमारे अनुग्रहका अनुभव प्रत्यक्षरूपसे