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किसानोंका सङ्घटन

किसानोंके प्रतिनिधियोंमें बहुतेरे ऐसे भी निकलेंगे जिन्होंने अबतक भी अवधके क़ानून लगानको एक बार भी न पढ़ा होगा।

नये, अर्थात् वर्तमान, कौंसिलमें जो लोग किसानोंके प्रतिनिधिकी हैसियतसे गये हैं वे भी अपना कर्तव्य-पालन करते नहीं दिखायी देते। अवधके नये क़ानून-लगानमें जो बातें किसानोंके प्रतिकूल हैं उन्हें मंसूख़ करानेकी कोशिश उन्हें करनी चाहिये थी। पर आज तक किसीने भी कोई चेष्टा ऐसी नहीं की। और यदि की भी हो तो उसका पता सर्वसाधारणको नहीं।

अब आगरा-प्रान्तके कानून-काश्तकारीमें तरमीम होनेवाली है। उसका मसविदा बनकर तैयार भी हो गया है और छपकर प्रकाशित भी हो चुका है। जिस कमिटीके सिपुर्द यह काम किया गया था उसकी रिपोर्ट भी उसीके साथ निकल गयी है। इस रिपोर्ट और इस मसविदेके अनुसारही यदि क़ानूनमें तरमीम हो गयी तो किसानोंको सबसे अधिक लाभ यह होगा कि लगान समयपर देते रहनेसे मृत्यु-पर्य्यन्त वे अपने जोतसे बेदख़ल न किये जा सकेंगे। परन्तु इसके साथही उनकी बहुत बड़ी हानि हो जानेके कई दरवाज़े भी खुल जायेंगे। अबतक १२ वर्ष तक लगातार ज़मीन जोतनेसे उसपर काश्तकारका मौरूसी हक़ हो जाता था। अब यह बात न होगी। उसे अब यह हक़ कभी न मिलेगा और यदि मिल भी सकेगा तो ज़मींदार साहबकी रज़ामन्दीसे और उन्हें काफ़ी मुआविज़ा देनेपर ही मिल सकेगा। यह तो बहुत ही कम सम्भव है कि ज़मींदार साहब किसीको खुशीसे मौरूसी काश्तकार बना दें और थोड़ीही