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लेखाञ्जलि


नहीं पाया जाता; इसकी जाति ही नष्ट हो गई है। १८६८ ईसवीमें इसी तरहके और भी कोई पच्चीस नमूने तैयार किये गये थे। जिन कङ्कालोंको देखकर ये नमूने तैयार किये गये थे वे सब बेलजियम देशके वनिसोर्ट नामक स्थानको कोयलेकी खानसे निकले थे। इस जन्तुके चार पैर होते थे। आगेके पैर छोटे और पीछेके बड़े होते थे। प्राणि-विद्या-विशारदोंका अनुमान है कि इस जन्तु को केवल पिछले पैरोंके सहारे भी चलनेका अभ्यास था। इसके अगले पैरोंकी उँगलियाँ कटारके सदृश होती थीं। उनकी लम्बाई १८ इंच तक थी। यह २५ फुट तक ऊंचा उठ सकता था। उस अवस्थामें इसका सिर आस-पासके पेड़ोंकी चोटीसे भी ऊपर निकल जाता था। .

पूर्वनिर्दिष्ट नमूनोंको यथाशक्ति विशुद्ध बनाने की पूरी चेष्टा की गई है। मूर्तिकारने इस कार्यका आरम्भ करनेके पहले इंगलैंडके प्रायः सभी पुराण-वस्तु-संग्रहालयोंको देखा, विज्ञान-विशारदोंसे इस विषयमें सम्मतियां लों और जितने कङ्काल आजतक इस तरहके प्राप्त हुए हैं सबके चित्र बनाये। इसके सिवा न्यूयार्क (अमेरिका) के आश्चर्यजनक पदार्थालयके अधिकारियोंने भी मूर्तिकार को कितने ही बहुमूल्य चित्र और हड़ियोंकी माप आदि देकर उसकी सहायता की। इस प्रकार आवश्यक ज्ञान प्राप्त करके मूर्तिकारने पहले कुछ मिट्टीके नमूने तैयार किये। फिर उन्हें प्रतिष्ठित विज्ञान-वेत्ताओंके पास सम्मतिके लिए भेजा। जिस नमूनेके विषयमें कुछ मत-भेद हुआ उसे तोड़कर उसने दूसरा नमूना बनाया और फिर उसे विद्वानों के