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देहाती पञ्चायतें

लिए और सर्वसाधारणके काम आनेवाली ज़मीनों और इमारतोंकी मरम्मत वग़ैरहके लिए यथाशक्ति प्रबन्ध करें।

यदि गवर्नमेंट हुक्म दे तो पंचायतोंका यह भी कर्त्तव्य होगा कि वे, जरूरत पड़नेपर, सरकारी उहदेदारों और अहलकारोंको उनके काममें मदद दें। अपने ज़िलेके डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के साथ मिलकर काम करने के लिए भी ये क़ानूनन बाध्य की जा सकती हैं।

ये पञ्चायतें एक प्रकारकी सरकारी अदालतें समझी गयी हैं और इनके पञ्च सरकारी मुलाज़िम (Public Servants) क़रार दिये गये हैं। उनके कामोंमें रुकावट डालने और बेजा दस्तन्दाज़ी करनेवालोंपर मुक़द्दमा चलाया जा सकता है और उन्हें ५०) तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।

किसी पंच या पंचायतके ख़िलाफ, उसके किसी कामकी बाबत, न कोई दीवानी कार्‌रवाई की जा सकती है और न कोई फ़ौजदारी मुक़द्दमा ही चलाया जा सकता है। शर्त यह है कि उसने अपने अधिकारोंका बर्ताव नेकनीयती और साफदिलीसे किया हो।

किसी मैजिस्ट्रेटके हुक्मसे फ़ौजदारीके मामलों में पंचायतें मौकेपर तहक़ीकात भी कर सकती हैं और हाकिम-मालके हुक्मसे क़ानून आराज़ीसे सम्बन्ध रखनेवाली जाँच भी कर सकती हैं। अब तो गवर्नमेंट पंचायतोंके अधिकार, दिन-पर-दिन, और भी बढ़ा रही है। उसने अब ऐसे क़ायदे बना दिये हैं जिनके मुताबिक चोरीके मामूली हादसोंकी रिपोर्ट भी चौकीदार पंचायतोंहीको करते हैं। पंचायतें यदि मुनासिब समझती हैं तो पुलिस-स्टेशनके अफ़सरको उसकी