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प्राचीन कालके भयङ्कर जन्तु


देखनेवालोंको उन जन्तुओंकी आकृतियों और डील-डौलका पूरा पूरा ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता। इस कारण अब विद्वान् और विज्ञानवेत्ता लोग, पुस्तकोंमें लिखे हुए वर्णनोंके अनुसार, कङ्कालोंकी बनावटको आधार मानकर, उन जन्तुओंकी मूर्तियां बनाने लगे हैं।

जर्मनी में हैम्बर्गके पास स्टेलिंजन (Stellingen) नामक एक शहर है। वहां कार्ल हेजनबेक (Carl Hagenback) नामक एक महाशयकी विख्यात पशु-शाला है। इस पशु-शालामें अतिप्राचीन समय के भयङ्कर जन्तुआंकी अनेक मूर्तियां बनवाकर रक्खी गई हैं। जिन जन्तुओंकी ये मूर्तियाँ हैं उनका वंश नाश हो चुका है। अब वे कहीं नहीं पाये जाते। करोड़ों वर्ष पूर्व वे इस पृथ्वीपर विद्यमान थे। जर्मनीके प्रसिद्ध पशु-मूर्तिकार जे० पालेनबर्ग (J. Pallenberg) ने इन मूर्तियोंका निर्माण किया है। ये आश्चर्यजनक मूर्तियाँ सिमेंटकी बनाई गई हैं और एक छोटेसे जलाशयके इर्द-गिर्द-चारों तरफ-रक्खी गई हैं। जलाशयका विस्तार सात-आठ बीघमें है। कुछ मूर्तियाँ पानीके पास ही, तट से लगी हुई झाड़ियोंके भीतर, खड़ी की गई हैं। कुछ पानीके भीतर भी हैं। वे हैं मगरों, घड़ियालों आदि जलचर जीवोंकी। कई मूर्तियोंमें ये जन्तु अपने सजातियों के साथ लड़ते-भिड़ते भी दिखाये गये हैं।

सबसे पहले जो मूर्ति बनाई गई थी वह इगुएनोडन नामके एक जन्तुकी है। यह प्राणी एक प्रकार का तृणभोजी जन्तु था। इसकी लम्बाई बहुधा ८० फुट तक पहुँच जाती थी। उक्त पशु-शाला में इस जन्तुकी लम्बाई कोई ६६ फुट है। यह जीव अब संसारमें