पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१६५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५७
देहाती पञ्चायतें

(ख) ऐक्ट मदाख़िलत बेजा मवेशीके अनुसार

जुर्माना जो ५) से ज़ियादह न हो।

(ग) सफाई और तन्दुरुस्तीके कानूनके अनुसार

जुर्माना जो १) से ज़ियादह न हो।

कोई पञ्चायत असली सज़ाके तौरपर या जुर्माना अदा न करनेकी सूरतमें कै़दकी सज़ाका हुक्म नहीं दे सकती। वह सफ़ाई और तन्दुरुस्तीके क़ानूनके खिलाफ़ किये गये जुर्मोंकी समात भी तब तक नहीं कर सकती जबतक वह क़ानून उसके हलकेमें जारी न कर दिया जाय।

जुर्माना करते वक्त पञ्चायतको यह हुक्म देने का अधिकार है कि कुल जुर्माना या उसका कुछ हिस्सा, वसूल होनेपर, नीचे लिखे हुए कामोंमें खर्च किया जाय—

(क) उस ख़र्चको पूरा करनेमें जो मुक़द्दमा दायर करनेवालेने उस मुकद्दमे में मुनासिब तौरपर किया हो।

(ख) किसी ऐसे माली नुक़सान या घाटेकी बाबत मुआविज़ा देनेमें जो उस जुर्मसे हुआ हो जो किया गया है।

अगर पञ्चायतको मालूम हो जाय कि किसीने कोई झूठा मुक़द्दमा दायर कर दिया है तो वह उससे ५) तक मुआविज़ा लेकर मुलज़िमको दिला सकती है।

दीवानीको नालिशें और फ़ौजदारीके मुक़दमे लेने और जुर्माना करने की बाबत जिन अधिकारोंका उल्लेख ऊपर हुआ है उससे अधिक