देश | …… | कर्मचारियोंकी संख्या |
पोलेंड | …… | १२ |
बेलजियम | …… | १८ |
आयरलेंड | …… | १३ |
नेदरलेंड्स | …… | १५ |
स्विट्ज़रलेंड | …… | २१० |
जर्मनी | …… | १० |
स्विट्ज़रलेंडके २१० कर्म्मचारी देखकर कहीं यह न समझ जाइएगा कि ये लोग बड़ी-बड़ी तनख़्वाहें पाते होंगे, नहीं इनमेंसे अधिकांश दफ़्तरी, चपरासी, ज़मादार, पोर्टर वगैरह ही हैं। कारण यह कि दफ़्तर इन्हींके देशमें हैं। वहाँ चपरासी और कुलीका काम करनेके लिए ग्रेटबिटन और फ्रांससे अँगरेज़ और फ़रासीसी जानेवाले नहीं। इसीसे वहींवालोंको ये सब पद दे डाले गये हैं। जो जर्मनी लीगके खर्च के लिए एक फूटी कौड़ी भी नहीं देता रहा है उसने भी लीगके दफ़्तरोंमें अपने १० कर्म्मचारी ठूँस दिये हैं। पर जो भारत ८ लाखसे भी अधिक हर साल देता है उसके सिर्फ़ तीन ही कर्म्मचारी वहाँ प्रवेश कर पाये हैं। यह न समझियेगा कि फ्रेंच-भाषा न जाननेके कारण अधिक भारतवासी नहीं लिये गये। ढूँढ़नेसे कोड़ियों भारतवासी ऐसे मिल सकते हैं जो अँगरेज़ी और फ्रेंच दोनों भाषाएँ बखूबी जानते होंगे।
[फरवरी १९२७]