यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
लेखाञ्जलि


जायेंगे। देहातियोंने लड़कियोंको एक बाड़ा बनाकर उसके भीतर रख दिया। मिस्टर सिंह लौटे तो उन्होंने देखा कि लड़कियों के बदनपर सर्वत्र फोड़ेसे हो रहे हैं और ये बहुत ही कमज़ोर, प्रायः म्रियमाण दशामें हैं। पास पहुंचनेपर उन्होंने विशेष उछल-कूद न की। वे भागी भी नहीं। सिंह महाशय उन्हें गाड़ीपर रखकर अपने अनाथालयमें ले आये । वहीं उनकी स्त्रीने उनको खिलाने-पिलाने और रखनेका भार अपने ऊपर लिया। पर छोटी लड़की को अतीसार हो गया और वह मर गई। बड़ी लड़की धीरे-धीरे चङ्गी हो गई। इस समय बड़ी लड़की क़दमें अपनी उम्रकी लड़कियोंके बराबर ही है।

अनाथालयमें आनेपर देखा गया कि लड़कियोंकी आँखोंकी पुतलियां या ढेले उसी तरह घूमते हैं जिस तरह कि जानवरोंकी आँखोंके घूमते हैं। वे बैठती भी उसी तरह हैं जिस तरह जानवर बैठते हैं। कच्चा मांस उन्हें बहुत प्रिय था। कोई चीज़ खाने या पीनेके पहले वे उसे सूंघ लेती थीं। मांस यदि कहीं दूर भी रक्खा होता तो गन्धसे वे जान लेती थीं कि वह कहाँपर है और झट वहीं पहुँच जाती थीं। मांस देखनेपर उनकी लार टपकने लगती थी और जबड़े हिलने लगते थे। वे दांत भी पीसने लगती थीं और एक अजीब तरहका शब्द करती थीं। अनाथालयके बच्चोंकी सङ्गति उन्हें पसन्द न थी। हां, कुत्तों, बिल्लियों और मुर्गियों के साथ रहना उन्हें अधिक पसन्द था। कपड़ोंसे वे नफरत करती थीं। पहनानेसे वे उन्हें फाड़ बालती थीं। रातको वे एक दूसरीपर लदकर, कुत्ते के बच्चोंकी तरह,