है। अमेरिकाके भी कितने ही छोटे-छोटे राज्योंके प्रतिनिधियोंको इसमें जगह मिली है। चीन, फ़ारिस, तुर्की आदिके भी प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं। पर बोलबाला बड़े राज्योंहीके प्रतिनिधियों का है। अवशिष्ट राज्योंको अस्थायी हो सभासदत्व प्राप्त है। सो भी कुछ कुछ समय बाद। प्रतिनिधित्वके नियम इस खूबसूरतीसे बनाये गये हैं जिसमें, काम पड़नेपर, छोटे-छोटोको दाल न गले; बड़े अर्थात् बलाढ्य राज्य ही मनमानी कर सकें। सो शान्तिस्थापनाकी चेष्टा करनेवालोंने यहाँ भी अपनी स्वार्थपरताका पूरा खयाल रक्खा है। अतएव कहना चाहिये कि यह शान्ति-सभा केवल योरपके कुछ देशोंके हाथका खिलौना है। उन्होंने अपने मतलबकी सिद्धिके लिए इसकी सृष्टि की है। इसीसे अमेरिकाके संयुक्तराज्य इसमें शामिल नहीं हुए। इसमें आधिक्य और ज़ोर जापान और योरपहीके कुछ देशोंका है। इसकी कुछ काररवाईयोंसे नाराज़ होकर योरपके भी एक देश, अर्थात् स्पेन,ने इसका साथ अभी हालही में छोड़ दिया है। इसके नियमोंमें एक नियम यह भी है कि यदि कोई देश किसी देश-विशेष पर अकारण हो, अथवा किसी क्षुद्र कारणसे,आक्रमण करे तो शान्ति-सभा उसकी रक्षा करेगी। पर रीफोंके सरदार अब्दुलकरीमपर अभी उस दिन फ्रांस और स्पेनके, तथा सीरियापर फ्रांसके जो आक्रमण हुए उनसे इस लीगने उन देशोंकी रक्षा तो दूर, उन आक्रमणोंके विषयमें विशेष चर्चा तक अपने अधिवेशनोंमें न की। इधर विदेशी राज्यों के विशेषाधिकारोंके कारण चीनमें जो उत्पात हो रहे हैं उनपर भी इस सभाने टीका-टिप्पणी तक न की। कुछ देशोंको
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