पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१५—लीग आफ़ नेशन्सका ख़र्च और भारत।


सन् १८५७के ग़दरकी याद कीजिये। उसमें बड़ी से बड़ी नृशंसताएँ हुई थीं। कितने ही क़त्ले-आम भी, शायद, हुए थे। पर उन सबका सविस्तर और सच्चा वर्णन कहीं नहीं मिलता। लोगों का कहना है कि ग़दरके इतिहाससे पूर्ण जितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं उनमें कुछ नृशंस बातें बढ़ाकर लिखी गयी हैं और कुछपर धूल डाली गयी है। कलकत्ते के ब्लैकहोल और कानपुरके क़त्लकी कथा तो खूब विस्तारके साथ और शायद बढ़ाकर भी लिखी गयी है। पर गोरोंने कालोंपर जो अत्याचार किये हैं उनपर कम प्रकाश डाला गया है और कुछ घटनाओंपर तो बिलकुल डाला ही नहीं गया। अब कोई साठ-सत्तर वर्ष बाद एडवर्ड टामसन (Edward Thomson) नामके एक अँगरेज़को उन पुरानी बातोंकी याद आयी है। उन्होंने अँगरेज़ी में एक पुस्तक लिखकर संयुक्त-राज्य (अमेरिका) के न्यूयार्क नगरसे प्रकाशित की है। उसका नाम है—The Other Side of the