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अमेरिकामें कृषि-कार्य

रह गयीं। अब तो सैकड़ों बीघे गेहूँ की फ़सल बहुत जल्द कलोंसे कट जाती है। १८५१ ईसवीमें कटी हुई फ़सलको तारोंसे बाँध डालनेकी मैशीन भी बन गयी। वही अब बाँधनेका काम करती है। उससे बाँधे गये गट्ठे खलिहानमें खोलकर सुखाये जाते हैं। सूख जानेपर वे मांड़नेवाली मशीनके सिपुर्द कर दिये जाते हैं। एक आदमी लाँकको कलमें डालता जाता है। कल उसकी बालोंको अलग और डंठलोंको अलग कर देती है। बालोंका दाना निकलकर ढेर हो जाता है। तब वह एक पंखेदार मैशीनसे साफ़ कर लिया जाता है। इस प्रकार स्वच्छ अनाज अलग हो जाता है और भूसा अलग। डंठलोंको तोड़कर भूसा बनानेकी मैशीनें अलग ही हैं। वे सैंकड़ों-हज़ारों मन भूसा बहुत आसानीसे तैयार कर देती हैं।

संयुक्त-देश (अमेरिका) में आलू बहुत पैदा होता है। उसे बोनेके लिए भी छोटी-बड़ी कई तरहकी मैशीनें काममें लायी जाती हैं। यहाँ तक कि घास काटनेकी भी मैशीनें वहां काम करती हैं। घासकी वहां बहुत अधिकता है। अकेले उसकी बिक्रीसे वहाँवालों को करोड़ों रुपये की आमदनी होती है। उसके गट्ठे बांधकर बाहर भेजे जाते हैं।

भारतके शिक्षित जनोंको देखना चाहिये कि कृषिका व्यवसाय कितना लाभदायक है। अनेक कारणोंसे, जिनमेंसे कुछका उल्लेख ऊपर हो चुका है, यहाँ अमेरिकाकी जैसी खेती नहीं हो सकती। तथापि जो लोग साधन-सम्पन्न हैं और जिनके पास ज़मीन है उन्हें दूसरोंकी गुलामी न करके, नये ढङ्गसे खेती करना चाहिये। जबतक पढ़े लिखे भारतवासी इस ओर ध्यान न देंगे या कृषक-मण्डलीमें