अच्छा, तो ये दैवी दुर्घटनाएं और रोग-दोष आदिक व्याधियाँ और देशोंको भी सताती हैं या नहीं? इनका अवतार या अविष्कार केवल भारतहींके लिए तो है नहीं। और देशोंमें भी पानी नहीं बरसता। वहां भी प्लेग, हैजा, बुख़ार, इनफ्लुएंजा आदि रोग प्रजापीड़न करते हैं। फिर क्या कारण है जो वहांके लोग खूब फूल-फल रहे हैं, खूब बढ़ रहे हैं, खूब अपनी उन्नति कर रहे हैं? अंगरेजोंहीके देश इंग्लैंड और वेल्समें, १९११ ईसवीमें, जन-संख्याकी वृद्धि लगभग ११ फी सदीके हिसाबासे हुई थी। वृद्धिका यह क्रम बहुत कम था १८४१ ईसवीसे लेकर १९११ नक इतनी कम वृद्धि कभी न हुई थी। तथापि भारतकी फ़ी सदी ६.५ वृद्धिसे वह भी कुछ कम दूनी थी! यदि ये सब व्याधियां ईश्वर-निर्मित मान ली जायं तो इंग्लैंड और भारतके ईश्वर अलग-अलग हो तो हैं ही नहीं। वही ईश्वर वहाँ है, वही यहाँ। भारतमें सब प्रकारकी खाद्य-सामग्री उत्पन्न होती या हो सकती है। खनिज पदार्थ भी यहां अधिकतासे पाये जाते हैं। नदियां भी अनेक हैं। अधिवासी यहाँक परिश्रमी और समझदार हैं। फिर क्या कारण कि यहीं के लोग मरें तो अधिक, पर पैदा हों कम। बात यह जान पड़ती है कि गवर्नमेंट प्रजाकी रक्षा करने, उसके लिए तन्दुरुस्ती कायम रखने के यथेष्ट साधन प्रस्तुन करने, और अवर्षणके साल आबपाशीके कृत्रिम द्वार खोलनेका काफ़ी प्रयत्न नहीं करती। जहाँ दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह कोस तक एक भी सरकारी शफाखाना नहीं वहाँ हैजा या इनफ्लूएंजा फैल जानेपर लोग यदि धड़ाधड़ मरते चले जायँ तो क्या आश्चर्य। यह दशा और देशोंमें नहीं। इसीसे पूर्व-
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सन १९२१ की मनुष्य-गणना