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लेखाञ्जलि

(अवर्षण ) या किसी रोग-विशेषके कारण बहुत नर-नाश हुआ---जितने बच्चे उत्पन्न हुए उनकी अपेक्षा मरे अधिक मनुष्य । इसीसे आबादी कम हो गयी पर प्रजाके प्रतिनिधि यदि इस घटनाकी आलोचना करेंगे तो हासके कारणोंपर विचार करते समय सरकारको उसके कर्तव्यकी भी याद दिलाये बिना न रहेंगे। वे कहेंगे---जिस प्रजाके आप मांँ-बाप बनते हैं और जिससे प्राप्त हुए रुपयेकी बदौलत बड़े-बड़े राजकर्मचारी गुलछर्रे उड़ाते हैं उसके हितके लिए आपने अपने धर्मका पूर्ण पालन क्यों नहीं किया ? जिन मारक रोगोंके कारण इतना जन-नाश हुआ उन्हें दूर करनेके लिए आपने उपाय क्यों नहीं किये ? और किये भी तो काफ़ी क्यों नहीं किये ? मारक रोगोंका आविर्भाव क्या अन्य देशोंमें नहीं होता ? वहाँ इतने मनुष्य क्यों नहीं मरते ? इसीलिए न कि वहांकी सरकार सफाई और तन्दुरुस्तीका अधिक खयाल रखती है, चिकित्साका प्रबन्ध अधिक अच्छा करती है, मनुष्य-संख्याके अनुसार ही दवाखाने क़ायम करती और उन्हें बढ़ाती रहती है । आपने ये सब काम यथेष्ट नहीं किये । इसीसे इतने अधिक आदमी मर गये। अतएव इस व्यर्थ नर-नाशके उत्तरदाता आप भी हैं। अस्तु ।

पिछली मनुष्य-गणना १८ मार्च १९२१ को हुई थी। उसकी आलो- चनात्मक पूरी रिपोर्ट निकलनेमें तो बरसोंकी देरी है। पर कच्चा चिट्ठा तैयार हो गया है और सरकारकी कृपासे गैज़ट आव इण्डियामेंछप भी गया है। उससे मालूम हुआ कि जिस दिन---दिन क्यों रातको---आदमियोंकी गिनती हुई थी उस दिन इस देशकी आबादी ३१,९०,७५,१३२ थी। अर्थात् अँगरेज़ी शासनके अधीन भारतमें २४,७१,३८,३६६