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चित्रों द्वारा शिक्षा

प्रायः सबके सब, युद्धसम्बन्धी थे और अंगरेजी गवर्नमेंटकी जल, थल और व्योम-विहारणी शक्तिके द्योतक थे। उनका दिखानेका मतलब कुछ और ही था, शिक्षा-दान नहीं। तथापि उनसे भी मनोरञ्जनके सिवा, कितनी ही नई-नई बातों का ज्ञान देखनेवालोंको हो सकता था। जैसा प्रबन्ध महाराज बड़ोदाने अपने राज्यों देहातियोंकी ज्ञानवृद्धिके लिए किया है वैसा, इस देशमें अन्यत्र कहीं भी सुनने में नहीं आया। शिक्षा विभागका सूत्र अब भारतीयोंहीके प्रतिनिधि, मन्त्रियों के हाथमें आ गया है। अतएव, वे चाहें तो शिक्षा-दान की इस प्रणालीका प्रचार अपने-अपने प्रान्तों में कर सकते हैं।

[अप्रैल १९२१]