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लिली में उसे अकेला छोड़ दिया है, प्रार्थना पर भी सहायता की । इसलिये मृत्यु भी आज तुच्छ है-लत्य का साक्षात्कार, चिरकाल के यारया राम एक तरफ हैं। घोर प्रकृति, दुर्ष पहाड़, अपार बाधाएँ प्राणों का मोह पैदा करती हुई एक तरफ । पर प्राणों का मोह तो उसे होता है, जिसका मंसार सुखमय, बिलास की रंगशाला में परियों की पद-भूमि हो । एक बार पहाड़ की ओर गईन उठाकर रामकुमार ने देखा । घोर अंधकार के सिवा कुछ भी न देख पड़ा। उसके बाद नग्न गिरि की पूजा में अपने वस्त्र उतारकर पद-मूल कर मन-ही-मन कहा-'लो, अब कुछ भी मेरे पास अपना कहने के लिये नही रह गया। मैं अब केवल उनसे मिलकर एक बार पूछना चाहता हूँ, मेरे पन का ग्रहण मेरे किस अपराध के फल स्वरूप प्रापने नहीं किया ? अर्द्ध विक्षिप्त-सा होकर बाह्य त्याग को सीमा तक पहुँचाकर रामकुमार पहाड़ चढ़ने लगा । कमर-मर सब जगह घास रामी हुई. खड़ा पहाड़, वर्षा के जल से पत्थरों पर कहीं-कहीं काई जमी हुई, प्रत्ति पद सौंप और बिच्छुओं का भय । पर रामकुमार को कोई होश नहीं, केवल राम से मिलने की लगन लगी हुई। कुछ दूर बाद पहाड़ से एक मरना उतरा था, जल न था, बह रास्ता मिलने पर, उसी से हाथ-पैर, चारो टेककर चढ़ता गया। कुछ जाने पर थका, तो महावीरजी के देह के घी-मिले सेंदुर की सुगंध आने लगी। मन में विचार पाया, महावीरजी मेरे साथ मेरी रक्षा