यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रये

विद्या ने कभी पति को कोई सलाह न दी । पति की ही अर्जी उसकी मर्जी रही । रामकुमार के हृदय को भक्ति से स्वार्थ- पूर्ति न होने पर एक चोट लगी है, यह वह समझ चुकी थी, इसलिये अपने स्नेह से बराबर उसे सिक्त रखने का प्रयत्न करती रहती। इसी बल से रामकुमार चल-फिर रहा था । पिता की वर्षी में दो हजार का खर्च है। इस बार विद्या के सब गहनों की बाजी है। बिना वर्षी किए जा नहीं सकता, पिता को लोग हँसेंगे। यह सोच-सोचकर एक दिन वर्षों की तैयारी करनी पड़ी। विद्या न कुन जे कर निकालकर दे दिया। उनकी तरफ़ देखा तक नहीं । बगबर निगाह पति की आँखों से मिली रही। "वर्षी हो गई। दो हज़ार ब्राह्मणों का जमाव रहा । एक दिन उसने अपने ही कानों शाम को प्राते हुए सुना, लोग बातचीत कर रहे थे, 'कैसा बे रक्फ बनाया ? रामकुमार संसार से सब प्रकार हताश हो गया। एक दिन विद्या को विदा कराने के लिये उसका भाई आया। रामकुमार को निराभरण विद्या को भेजते हुए बड़ी जन्जा लगी। पर वह स्वयं कुछ दिनों के लिये विद्या से अलग होना चाहता था। पति को छोड़कर पिता के यहाँ जाने की विद्या की भी इच्छा त थी। उसने निश्चय कर दिन इनके साथ हाथ पकड़कर हमेशा के लिये घर छोड़ेगी। ऐसी दशा जब उत्तरोत्तर हो रही है, तब वह दिन भी शीघ्र आनेवाला है, जब उसे स्वीत्व की विभूतियों से अमर, ऊँचा श्रादर्श पति के प्रेम में पूरा करना होगा। उसे लिया था