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लिली में है। WO सुमने सुग्रीव धौर विभीषण को राजा बना दिया, तो मेरी कुछ को खबर करो। प्रभो, मैंने तुम्ही को संसार में माना है, और अाज तुम्हारी भोर से मुँह फेरते हुए छाती दो टूक हुई जा रही है। प्रभो, दास पर दया करो, वह बड़े दुःख रामायण में भक्त शिरोमणि तुजसीदासजी ने लिखा है- जो संरक्षि शिव रावाहिदीन दिए दस माथ; सोइ संपदा विभीषणहि सकुचि दीन रघुनाथ । क्या यह सब झूठ ही है ? रघुनाथ, विश्वास जो नहीं होता? अधिक और क्या लिखू ? तुम तो हृदय हृदय का हाल जानते हो, स्वामिन ! तुम्हारा दास- रामकुमार "ऊपर लिफाफे में, श्रीरामचंद्रसिंह, रामघाद चित्रकूट, सीतापुर, बाँदा लिख कर चिट्ठी डाकखाने में छोड़ दी। एक- चित्त से प्रभु के उत्तर की राह देखता रहा। चिंता से दुर्बल हो गया। एक दिन चिट्ठीरसा वही चिट्ठी वापस ले आया । चिट्ठी देख कर रामकुमार अर्द्ध-विक्षिप्त हो गया ! "धीरे-धीरे वर्षों का ममय ा गया। लोग स्वयं उसे बुला- कर सलाह देने लगे कि कुल कमाई तुम्हारे पिता की है, ऐसा न हो कि स्वर्ग में उन्हें संकोच हो । लोग इस प्रसंग पर राम कुमार को काफी मादर देते थे। उस के चले जाने पर आपस में कहते, 'इनके पिता हँसिया-खुषी छोड़कर परदेस गए थे, खैर, उनकी तो निबह गई, पर इन्हें देखो, फड़ाते हैं चार साल में।'