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१२ लिली घर भी आपका । श्रापका खर्च न सकेगा, रुपयों का इंतजाम . कर दिया जायगा ।' रामकुमार के विचार से साक्षात् भरतजी आ गए । बोला, 'रुपए तो अभी मुझे चाहिए।' छकन समझ गए कि यह बेवकूफ है, यह मुझसे उसी तरह रुपए लिया चाहता है, जैसे अपने बाप से लेता था। बोले, 'तो कितने रुपए अभी आपको चाहिए ? दो सौ छकान ने कहा, 'हमारे पास होते, तो हम दे देते ; हमें दूसरे से लेकर देना है, और वह अगर र कुछ रेहन रक्खे रुपया न देगा। अगर आप कहें, तो हम अपने यहाँ से २० तोले की जंजीर सोने की रेहन करके रुपए ले श्रावें ! आप सोलह तोले भी हमारे यहाँ सोना ले आवें, तो पिछले पहर तक दो सौ रुपए ले जा सकते हैं ! दुसरे के पास जायेंगे, तो २) रुपया सैकड़ा ब्याज से कम में न देगा, हम ११ ही रुपया लेंगे। इसके सिवा कोई चारा न था । ) रामकुमार ने रुपयों का इंतजाम कर रखने के लिये कह दिया। अधर छकत घर गए, इधर यह पत्नी के पास आया। बड़ी लाज लगी, पर उपाय न था, विद्या से कहा, अपनी 'जंजीर दे दो, वो पिछले पहर रुपए ले आऊँ ।' अम्लान विद्या ने बॉक्स खोलकर जंजीर निकाल ली; फिर पति को देखती हुई, उसे ही हर तरह पाने की प्रार्थना से हाथ पर रख दी । रामकुमार जंजीर लिए पड़ा रहा। चौका-टहल कर, पानी भरकर, चलती हुई महरी ने पूछा, 'आज अभी तक भैया पड़े हैं, गाँव के लोग कहते हैं, आज सुबह छक्कत साह आए थे, जान पड़ता है,