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पद्मा और लिली


"उनका लड़का आगरा-युनिवर्सिटी से एम्० ए० में इस साल फर्स्ट क्लास फर्स्ट आया है।"

"हूँ" पद्मा ने सिर उठाया। आँखें प्रतिभा से चमक उठीं।

"तेरे पिताजी को मैंने भेजा था, वह परसों देखकर लौटे हैं। कहते थे, लड़का हीरे का टुकड़ा, गुलाब का फूल है। बातचीत दस हजार में पक्की हो गई है।"

"हूँ" मोटर की आवाज़ पा पद्मा उठकर छत के नीचे देखने लगी। हर्ष से हृदय में तरंगें उठने लगीं। मुस्किराहट दबाकर आप ही में हँसती हुई चुपचाप बैठ गई।

माता ने सोचा, लड़की बड़ी हो गई है, विवाह के प्रसंग से प्रसन्न हुई है। खुलकर कहा--"मैं बहुत पहले से तेरे पिताजी से कह रही थी, वह तेरी पढ़ाई के विचार में पड़े थे।"

नौकर ने आकर कहा--"राजेन बाबू मिलने आए हैं।" पद्मा की माता ने एक कुर्सी डाल देने के लिये कहा। कुर्सी डालकर नौकर राजेन बाबू को बुलाने नीचे उतर गया। तब तक दूसरा नौकर रामेश्वरजी का भेजा हुआ पद्मा की माता के पास आया, कहा--"ज़रूरी काम से कुछ देर के लिये पंडितजी जल्द बुलाते हैं।"

(२)

ज़ीने से पद्मा की माता उतर रही थीं, रास्ते में राजेंद्र से भेंट हुई। राजेंद्र ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। पद्मा की माता ने कंधे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया, और