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अथ कोठरी में गया। विद्या मुस्किराती हुई बाहर से झाँकने लगी। रामकुमार ने देखा, भीतर अंगोछा जिस तरह फैलाया था, उसी तरह फैला है। भरतजी पाँच हजार नाम जप की मजदूरी उस पर नहीं रख गए। हृदय का बड़ा दुःख हुआ। मारे लज्जा के पत्नी से आँखें न मिला सका। विद्या बड़े कष्ट से हँसी रोके हए थी। सांत्वना की बातें हस डालने के भय से नहीं कह रही थी। इसी समय कफन साह ने द्वार पर आकर पुकारा। छत पहले बचका लादते थे। अब रुपया कर्ज दिया करते हैं। रामकुमार द्वार पर गया, तो बन ने पालागन करके कुशल पूछी। अनुभवी छक्कन पड़ोस के दूसरे गाँव में रहते हैं। आलसी, अकर्मण्य आजकल के बाबू युवकों की नस- नस से वाकिक हो चुके, उन्हें थोड़े रुपए देकर काफी रकम--- सोने-चाँदी के गहने ले चुके हैं। रामकुमार के पिता का देहांत हो चुका है, पेंशन बंद हो गई है, जवान लड़का बहू के रूप में फंसकर बाहर पैर नहीं निकालता, हैसियत इतनी अच्छी नहीं कि इसी तरह हमेशा निभे, कहीं बीच में रुपयों की जरूरत हुई, तो ऐसा न हो कि दूसरे के साथ शिकार "फँस जाय, यह सब सोचकर छक्कम साह घर से चले थे। सरल रामकुमार ने पहले ही कहा, 'पिताजा की तेरहीं में रहा-सहा रुपया खर्च हो गया है, अब तो बड़ी दिक्कत में हैं । छकान का श्रम सफल हुआ। बड़ी हमदर्दी से बोले, 'तो डर किस बात का है ? श्राप तो घर के लड़के हैं। जैसे यह घर आपका, वैसे वह