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लिली कहता है, 'बाय की कमाई का रुपया गाँजा है। हमारी-तुम्हारी तरह नदार है ? कराया तो तुमने तेरही मैं मनमाना खर्च, फिर रुका ? नहीं जाता नौकरी करने । जब माल होता है, तब भगवान का नाम सूझता ही है, आखिर बैठा-बैठा क्या करे ? अब आगे वर्षों में करात्रो खर्व दो हजार, देख लो, कभी जो हाथ खीचे!' इधर एक रोज ऐसा हो गया कि विद्या के हाथ में एक पैसा भी न रहा। उसने पति से कहा कि 'श्राज से अब एक पैसा भी खर्च के लिये नहीं है।' "युवक रामकुमार गंभीर होकर बोला, 'अच्छी बात है, अाज पैला हो जायगा। जैसा उसने पड़ रक्खा था कि भरतजी का नाम जपने पर अर्थ होता है, शाम होने पर एक कोठरी में बैठकर भरतजी का नाम जपने लगा। रात ग्यारह बजे तक पाँच हजार जप पूरा कर, वहीं एक चुटके में यह लिखकर कि मेरे इस जप की जो मजादूरी होती हो, यही अंगोछे पर रख दीजिए । उठकर पत्नी के पास आया। उधर विद्या भी चूल्हे के पास भोजन तैयार कर बैठी हुई पति के लिये तपस्या कर रही थी। गंभीर भाव से भोजन कर रामकुमार बाहर पाया, तब विद्या ने भी भोजन किया । मारे डर के उसने कारण न पूछा । प्रेम से उच्चसित हो, गंभीर भाव से, पलंग पर पड़े-पड़े पति ने स्वयं पत्नी से अपने अर्थोपगम का मंत्र बतलाया । विद्या मुंद फेरकर हँसने लगी। "सुबह उठकर रामकुमार नहाया, फिर भक्ति-भाव से उस