यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अर्थ आया, दो-तीन दिन बाद उनका दम निकल गया! आज पहला दिन था, जब गाँव के लोगों से रामकुमार को एक गृहस्थ की तरह, दीन होकर, धार्मिक उहंडता छोड़कर, बर्ताव करना पड़ा। पहला बुलाया गया, और लाश उठाकर गंगाजी चलने के लिये कोई न आया, तब नाई ने समझाया कि 'भैया, यह हाथ जोड़ने का समय है। रामकुमार जाकर घर-घर हाथ जोड़ता फिरा ! लोगों ने सलाह करके कहा, रामचंद्र शुक्ल मरे थे, तब लोगों को १५) के पेहे उनके लड़के ने खिलाए थे ; कहो, १५ के पेड़े खिलायोगे तो चलें अपने गारोह के बोस आदमी ।' रामकुमार को स्वीकार करना पड़ा। घाट से लौटने पर तेरहीं तक बड़ी विपत्ति रही। कुटुत्रों का व्यवहार बाटे दुश्मनों का- सा रहा । एक की जगह तीन-तीन लेकर टले । माता का भी क्रिया-कर्म उसी ने किया था। पर तब पिता थे, इसलिये संसार का बर्ताव नहीं समझ सका । तेरहों के बाद उसका पहला विद्या ने कहा, 'नकद आठ सौ रुपए थे, सब खर्च हो गए। धर्मक दबाव से पनी ने यह न कहा कि कोई काम देखो, नहीं तो इस तरह और कब तक चलेगा। रामकुमार ने कहा, 'अच्छी बात है, खर्च होने दो, मुझे धन के मालिक का पता मालूम है।' "कुछ समय और बीता, रामकुमार को पूजा बड़ चली। गाँववाले भायस में बतलाने लगे, 'कैसा बेवक है, पढ़ा-लिखा है, कहीं नौकरी या रोजगार नहीं करता, रामायण लिए चार- चार घंटे मंदिर में बड़बड़ाया करता है। इसके जवाब में कोई .