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2G लिली जाने के लिये कई बार कहा । वह वृद्ध हो गए थे। शारीरिक शासन करने में असमर्थ थे। रामकुमार ने पिता के शब्दों पर ध्यान न दिया। पत्नी ने भी श्वशुर के आदेश की एक बार पुनरावृत्ति की, क्योंकि उसे भय था कि पति के कॉलेज न जाने का कारण वही समझी जायगी। रामकुमार ने कहा- 'अंगरेजी शिक्षा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।' "तब तक रामकुमार को अर्थ की चिंता न थी। पिता को पेंशन मिलती थी, संसार-चक्र मजे में चला जा रहा था। उसकी माता का कुछ दिन बाद देहांत हो गया। एक साल का क्रिया-कर्म भी पूरा हुआ। पिता ने कहा-'बेटा, हम करारे के रूख हैं। तुमने पढ़ा नहीं, तो हमारे रहते कोई काम ही कर लो; नहीं तो पीछे तुम्हें कष्ट होगा।' रामकुमार गंभीर होकर चोला-'आप इसकी चिंता न करें।' मन-ही-मन कहा, कितना अविश्वास इन्हें ईश्वर पर है--'पशु-पक्षित की लेत खबरिया, तोरित सुरति करै ; अरे मन, धीरज क्यों न धरै !” रामकुमार को बालक-काल से संतों की उक्तियों पर दृढ़ विश्वास करने की आदत पड़ गई थी। गोस्वामीजी की चौपाई याद आई-विश्व-भरण-पोषण कर जोई, ताकर नाम भरत अस होई । जो भरत संसार का पालन करते हैं, वह भोजन न देंगे, उन पर कितना अविश्वास है इन लोगों को ! सोचता हुआ वह चला जाता, पिता खिन्न हो जाते। "कुछ समय और पार हुआ, एक रोज पिता को कुछ बुखार