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अर्थ कभी किसी राक्षस-रूप में कृष्ण को धुसेड़कर पेट चिरवाता बाहर निकालता। इस तरह बंदर को श्रादमी और आदमी को बंदर बनाने की आदत पड़ गई । करुणा तुलसी-कृत रामायण और सूरसागर के दैनिक पाठ से बढ़ती गई। नवें दर्जे में था, इसी समय भक्ति के आवेश में सूझा, म्लेच्छों की विद्या न पहूँगा, यह धन के लिये है, ज्ञान के लिये नहीं। इस समय चह पंद्रह साल का बालक था। घरवालों का शासन प्रबल था, इसलिये स्कूल जाना पड़ा। पर वह रह-रहकर सोचता था कि उसके घरवाले ढोंगी हैं । बाहर से तो भगवान् का नाम लेते हैं, पर भीतर से रुपया हो उनका लक्ष्य है। घरवालों से उसे घृणा हो गई । धीरे-धीरे दो साल का समय और बीता, और इसने प्रवेशिका परीक्षा पास कर ली। इसी समय पिता ने उसका विवाह किया । बहू युवती थी। बहू के घर आने पर रामकुमार ज्यों-ज्यों क्षीण हो चला, उसकी ईश्वर-भक्ति और आस्तिकता त्यों-त्यों प्रवीण होने लगी। पति ही पत्नी का ईश्वर है, यह संस्कार यद्यपि घर से पत्नी को प्राप्त हो चुका था, फिर भी रामकुमार ने अपनी ओर से शिक्षा देने की गफलत न की। फलतः वह गंभीर होने लगा, और उसकी धार्मिक साधना भी बहू को प्रभावित करने के लिये बढ़ गई। बहू सुदरी थी। पत्नी को पूर्ण मादकता से प्यार देना धर्म में दाखिल है। अतः इधर भी रामकुमार संसार की भावनाओं को स्वर्ग में बदल-बदल कर विहार करने लगा। पिता ने कॉलेज