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ई लिली "उनका एक जीवन-चरित इधर 'भारती' में प्रकाशित हुआ है, वह बड़ा अद्भुत है। उसमें एक ईश्वरीय सत्य है । श्राप कहें, तो सुनाऊँ।" "सुनाइए।" 3 हीरालाल कहने लगा-"रामकुमार एक कुलीन ब्राह्मण के घर का बालक ही था, जब घर की पूजार्चा देखकर, पाठ सुनकर हिंदू-धर्म पर उसे पूरा विश्वास हो गया ! जैसा मुना, वैसी ही धारणा भी बँध गई कि अगर आज अकेले भीम होते, तो म्लेच्छों के पैर क्षण-भर के लिये भी उनके सामने न ठहरते। जहाँ गदा को घुमाने पर भगदत्त के हाथी सेमर की नई को तरह आकाश में उड़ गए, कुछ तो अब भी चक्कर काट रहे हैं, वहाँ म्लेच्छों का पता न रहता कि किस लोक में, अँधेरे की तरह प्रकाश में कहाँ, गायब हो गए। अगर कहीं महावीर स्वामी आ जाते-आ क्या जायँ, अब उनके समकक्ष योद्धा कोई रह ही नहीं गया, द्वापर में इसीलिये वह लड़े नहीं, नहीं तो वह अमर हैं, कहीं गए थोड़े ही हैं ! और उखाइ-उखाड़कर पटकते पहाड़, तो सारी अक्ल हवा हो जाती तुर्रमखानों की। इस तरह श्रीराम और कृष्णजी को सोचता हुआ आजकल के रावण की सशस्त्र सेना को वानर-मात्र की सहायता से परास्त कर देता, अभी कृष्णजी से असंभव कार्य-रूप गोवर्धन धारण करा, उसके नीचे देश के भगवद्भक्त गोप-गोपियों को आश्रय देकर वर्तमान इंद्र को दुश्शासन-वर्षा से उद्धार कर लेता, -