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अर्थ पंजाबमेल पूरी रफ्तार से कलकत्ता जा रहा है । दूसरे दर्जे में दो मुसाफिर पास-पास बैठे हैं। कुछ देर मौन रहकर एक ने दूसरे से नाम पूछा, जब वह प्रयाग में गाड़ी पर चढ़ा। उसने कहा-'मेरा नाम दिनेशकुमार है।" थोड़ी देर में घनिष्ठता बढ़ गई । पहला मुसाफिर हीरालाल कलकत्ता लौट रहा है। वहाँ व्यवसाय करता है। नवयुवक है, धनी व्यवसायी का लड़का, दिल्ली गया था। दिनेश भी नवयुवक है । हीरालाल को मालूम हुआ कि एक अच्छी जगह सिनेमा में कहानी लिखने की दिनेश को मिली है, इसलिये कलकत्ता जा रहा है। हीरालाल खुद' भी हिंदी के कथानक, उपन्यास तथा नाटक- सिनेमा-साहित्य का शौकीन है, कुछ ज्ञान भी इधर उसने अर्जित कर लिया है। पूछा- हिंदी के उपन्यास-लेखक रामकुमारजी को आप जानते हैं ?" "हाँ, वह तो आजकल प्रयाग ही रहते हैं।" दिनेश ने "मेरे विचार से उनके जो उपन्यास निकले हैं, उनकी जोड़ के हिंदी में दूसरे नहीं, आप क्या कहते हैं ?" "मेरा भी यही विचार है।”.