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श्यामा परे पिता के गुजरने का संवाद मिला । वह दूर दूसरे जिले में व्याही थी। अब उसके एक लड़का था। सरला पति और पुत्र के साथ जमींदार से मिली, और नाना की संपत्ति नाती को देने को बड़ी पारज्जू-मिन्नत की, पर जमींदार ने कहा- "हम तो दूसरे गाँव में रहते हैं, हमको कुछ पता नहीं, आप उन्हीं की लड़की हैं, आप अदालत से ले लीजिए।" फलतः नाबालिग बच्चे के बली ने अदालत में दरख्वास्त दे दी। भैयाचार को भी इससे अपने हक्क के लिये लड़ने की हिम्मत हुई । इधर जमींदार दयाराम ने इन सबको उठल्लू और बारा को लावारिस साबित किया। कई महीने तक अदालत चली ! जमींदार के गवाह सबसे मजबूत थे। नाती के सबसे कमजोर । दयाराम चारो ओर से चौकस रहते थे। एक पेशी को गए, तो मालूम हुआ, नाती-पक्षवाले रिश्वत की पूरी तैयार से डिप्टी साहब से मिलने गए हैं, क्योंकि अदालत के गवाहों की कम- जोरी उधर रुपए से पूरी करेंगे। दयाराम चलते-पुर्जे आदमी शहर से बात-को-बात में सौ रुपए की डाली खरीदकर लगवा ली, ओर डिप्टी साहब के बँगले पर पहुँचे। देखा, वास्तव में नाती-पक्षवाले डटे थे। डिप्टी साहब बाहर निकलनेवाले थे। दोनो पक्ष एक दूसरे को धूरते हुए स्वागत के लिये प्रतीक्षा कर रहे थे कि डिप्टी साहब अपनी धर्मपत्नी के साथ बाहर निकले। सब लोग खड़े हो गए।