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क२ लिली खर्च के लिये प्रतिमास तीस रुपए चंदा करा दिया, पंद्रह स्वयं देते रहे, और उसे वहीं स्कूल में भर्ती कर दिया। वफिम भोर श्यामा की करीब बराबर उम्र थी। बाप का इकलौता लड़का होने के कारण अच्छी तरह पला था, जल्द तगड़ा, जवान हो गया था । संसार का एक ही प्रहार से पूरा परिचय हो गया था। वह जी तोड़कर पढ़ने में श्रम करने लगा । सत्यप्रकाशजी : स्वयं तत्परता से उसे पढ़ाते थे । अपने में मिला लिया। श्यामा के भी पढ़ने और दस्तकारी सीखने का प्रबंध हो गया। कई साल हो गए, वकिम अपने गाँव नहीं गया । वहाँ कितना परिवर्तन हो गया, पर गाँव के लोग अपने स्वभाव से जहाँ थे, वहीं ठहरे हुए हैं । अत्याचार उसी प्रकार होते हैं, प्रतिकार का मार्ग वैसा ही रुका है। पं० रामप्रसादजी ने फिर किम की कोई खबर नहीं ली, मरते-मरते मर गए। ✓ (5) रामप्रसादजी का देहांत होने पर जमींदार पं० दयाराम ने बारा में अपना कब्जा कर लिया । जो पड़ोसी भैयाचार थे, उन्हें बाहर से उन्होंने भैयाचार स्वीकार ही न किया। गाववालों । को सिखला दिया कि कोई भैयाचार न कहे। घर में भी अपना कब्जा कर लिया। वहाँ अपने बैल बंधवाने लगे। साल-भर से बाग के आम-महुए वही बिनवा रहे हैं । पहले भैयाचार ने जबानी खुशामद की, पर दयाराम न पसीजे, तब दावा कर दिया। उधर रामप्रसादजी की लड़की को भी कई महीने बाद