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श्यामा वैकिम मुंह फेरकर बैठ गया। श्यामा नहाने लगी । लोहे के घड़ेवाला पानी किम के लिये रख दिया । फिर बंकिम नहाया । श्यामा गीती घोती में बरतन बाँधने लगी। नहाकर, इसी धोती को निचोड़कर बंकिम ने पहना । अँधेरा हो गया था। स्टेशन करीब ही डेढ़ मोल पर था। बरतनवाला गट्ठर बंकिम उठाने लगा, तो श्यामा ने रोक लिया, कहा- -"मुझे तो भादत है, मेरे सिर रख दो किम ने रख दिया। बाकी लावारिस सामान जमींदार के लिये छोड़कर उस संध्या में दोनो हमेशा के लिये गाँव से निकल गए । (७) बंकिम कानपुर पाकर एक धर्मशाला में टिका ! वहाँ से पता लगाकर आर्य समाज के मंत्री सत्यप्रकाशजी से मिला ! सत्यप्रकाशजी ऊँचे दरजे के शिक्षित प्रभावशाली मनुष्य है, अभी तक विवाह नहीं किया, करने का इरादा भी नहीं। बंकिम की कथा सुनकर हँसे । सामाजिक ऐसी अनेक प्रकार की व्याधियों की वह चिकित्सा करते रहते हैं, इसलिये अविश्वास नहीं किया । बल्कि सुनकर प्रोत्साहन देते हुए सब प्रकार की मदद करने को तैयार हो गए। उन्होंने बंकिम को अपने यहाँ बुला लिया, और एक दिन आर्य समाज में दोनो का विवाह कर दिया। बंकिम के वीरोचित कार्य से वह इतने प्रसन्न हुए कि अपने वकील और कर्मचारी मित्रों से कहकर ।