यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लिली "मिट्टी, लोहे किसी के भी हों, पानी ले आओ।" श्यामा एक सिट्टी और एक लोहे का घड़ा लेकर पास के खेत- वाले को कुएँ से पानी लेने चली । तीन-चार त्रियाँ खेत में मिलीं, देखकर आपस में बतलाने लगी-"ऐसा जगुआ गाँव में अब तक तो किसी ने न किया था। एक यही नोखे की जवान हुई है !" श्यामा के कानों में आवाद पड़ी, पर पलकें झुकाकर चली गई। मन में कहा- "ये अपने काम प्रानेवाली पड़ोसिने हैं !" बड़े भरकर लौट आई। तब बंकिम ने लाश उठाने के लिये बुलाया। पैरों की तरफ श्यामा ने पकड़ा, सिर की तरफ बंकिम ने। मौन कपोलों से बह-बहकर श्यामा के आँसू पिता के चरणों को धो रहे थे। दोनो ने लाश को नया कफन पहना, ढककर, गढ़े में रख दिया, फिर मिट्टी छोड़ने लगे। यह काम पूरा कर बंकिम ने कहा-"श्यामा, अब सूरज डूब रहा है। हमको जल्दी करनी चाहिए। तुम्हारे यहाँ क्या-क्या है ?" "हल है, माची है, सेरावन है, और पुर-बरेत, हँसिया, गड़ासा, कुल्हाड़ी, यही खेती का सामान है, और दो लोटे, दो थाली, तवा-चिमटा, एक कराही, एक कलछुल, एक बड़ा लोहे का, रस्सी और जाता "अच्छा, नहा लो, फिर गीली धोती में बरतन बाँध लो। मैं इधर को मुँह किए बैठा हूँ। फिर मैं भी नहा लँ। जल्दी चलें। फिर गाड़ी न मिलेगी।" +3