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श्यामा पकड़ लिया- मुझे भी ले चलो बाबू, तुम्हारे बर्तन मलकर दो रोटी खा लूंगी, यहाँ मैं नहीं रहना चाहती!" बंकिम चुपचाप खड़ा रहा । न-जाने कहाँ से एक शक्ति ने आकर उसे उभाड़ दिया। कहा-"अच्छा । सुनो । फावड़ा ले आभी। अब और जगह नहीं । तुम्हारे पिता को यहीं रक्खेंगे।" श्यामा ने फावड़ा निकालकर दिया । वंकिम लाश के बराबर लंबी जगह अंदर जाकर खोदने लगा। पहले कुछ देर तक श्यामा देखती रही, फिर दुःख में भी मुस्किराकर आकर फावड़ा पकड़ लिया । बोली-"तुमसे नहीं बनता। मुझे दे दो।" बंकिम हाँफने लगा था । फावड़ा दे दिया । कोंछी का काँछ। मारकर श्यामा खोदने लगी। बंकिम कुछ दम लेकर बोला--"तुम्हें आदत है। तुम खोदो। तब तक मैं कान खरीद लाऊँ?" कहकर वह पास के गाँव चला गया। आज इस रास्ते लोधों का निकलना बंद है । जमींदार डेरे पर यह कहकर गाँव गए हैं कि “जब तक दोनो हमारे पास न आवें; और माफी न माँगें, तब तक कोई इनसे बातचीत न करे। जब बंकिम श्यामा के पास आया, तब गढ़ा तैयार हो चुका था। सुंदर खुदा था। एक बार खड़े-खड़े बंकिम ने देखा । फिर कहा-"श्यामा, अब तुम दो घड़ा पानी ले आओ। लाश को रखकर एक में तुम नहा लेना, एक में मैं।" "लोहे का एक ही पड़ा है।" विनम्र स्वर से श्यामा ने कहा।