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496 लिली "यही मैं भी सोचता हूँ श्यामा " "तो अब क्या होगा?" निराशा को साक्षात् प्रतिमा ने जैसे कहा। "अब तो हमी तुम हैं।" "हम-तुम कैसे लहास गंगा ले चलेंगे?" "लाश गंगा पहुँचाना कठिन है । श्यामा, तुम्हारी शादी हो चुकी है ?" » "तुम्हारी ससुराल यहाँ से कितनी दूर है ?" "वह है, जगतपुर में।" "तो वहाँ से मैं तुम्हारे शौहर और ससुर को बुला लाता हूँ।" "वहाँ अब कोई नहीं "क्यो, कहाँ है ?" "भगवान के घर !" "तुम्हारा शौहर ?" "वह भी जब सात साल के थे, चले गए। सास है, उसने घर-बैठा कर लिया है।" हो तुम कहाँ जाओगी श्यामा ? मेरे पिताजी ने मुझे घर से निकाल दिया है, तुम सुन चुकी हो, अब मेरे लिये घर में जगह नहीं है, आज ही रात माठ बजेवाली गाड़ी से मैं कान- पुर चना जाऊँगा।" सुनकर, सजल आँखों से बढ़कर, श्यामा ने किम का हाथ