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श्यामा लिये जगह नहीं है, पं० रामप्रसादजी वहाँ से निकल गए। साथ-साथ जींदार तथा गाँव के लोग भी बड़ा बेहया-माला- यक है' कहकर चल दिए। लोध की लाश से ब्राह्मणों को क्या सहानुभूति ? वह तो उनके छूने लायक है नहीं। उसके संबंध में लोध सोचेंगे। जो लोध वहाँ थे, वे चलते हुए सीख दे देने की तजन। श्यामा को सुना गए । वे जमींदार के किसान हैं । जामीदार खेत-पात देने के उनके काम आ सकता है। सुधुश्रा की लाश से उन्हें क्या लाभ ?--फिर जब मालिक खुद नाराज हैं और श्यामा अपनी राह पर नहीं! बंकिम के कहने पर श्यामा गाँव भर की बिरादरी को पिता का मृत्यु-समाचार दे आई, देर तक प्रतीक्षा करती रही, पर कोई न पाया । तब बंकिम ने कहा, जान पड़ता है, कोई न आवेगा। बंकिम ने जिस काम का श्रीगणेश किया था, सोचा, उसे पूरा किए विना बाहर न जायगा, आखिर पिताजी ने तो घर से निकाल ही दिया है। जब यथार्थ बात के समझदार यहाँ नहीं, तब यहाँ रहकर होगा क्या। मन साथ-साथ श्यामा के लिये भी सोचता, इसका क्या होगा ? इसे भी तो भैयाचार छोड़ चुके हैं। "अब शायद कोई न आवेगा बाबू ! श्यामा ने पहलेपहल बंकिम का संबोधन किया।