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श्यामा ७३ लखुमा तेज आँखों देवीदयाल को देखकर बोला--"सुनो महाराज, हम बाँभन नहीं हैं, जो कुरमी-काछी, तेली-तमोली, सबकी पूरियों में पहुँचा पेल दें। हम हैं लोध-लोध का बच्चा कभी न कच्चा ! अब खरी न कहलाओ। रूका बुना को लोगों ने पकड़ा, सबने छोड़ दिया, फिर तुम्ही पिलकर सत्यनारायण की कथा में खा आए।" कहकर सदप आँखें फेरकर अमींदार को भक्ति-भाव से देखने लगा। पं० रामप्रसादजी गाँव आनेवाले थे। आज आ गए। घर पहुँचकर सुना कि बंकिम के संबंध में कोई मामला डेरे पर चल रहा है। उसी वक्त डेरे चल दिए। पं० रामप्रसाद को देखते ही देवीदयाल ने धीरे से कहा--"अब गठ गया मामला, यह भी सपूत की करनी अपनी आँखों देख लें।" सब लोग स्तब्ध हो गए । जमीदार ने आदर से बैठाला। फिर नमस्कार आदि के बाद कुशल तथा लखनऊ के हाल पूछने लगे। पं० रामप्रसादजी अपने सम्मान के विचार से गंभीर होकर बोले-"सब कुशल है। इधर एक शिष्य के यहाँ विवाह था। ज्योते पर जाना ही पड़ा । वह डिप्टी कमिश्नर है । विवाह के समय भाषण करने के लिये कहा। हमने सोचा, विवाह का समय है, किस विषय पर भाषण करें? फिर ब्रह्मचर्य-विषय पर कहा। रामप्रसादजी डब्बे से पान निकालकर जमींदार साहब