यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्यामा घर उठाकर रख पावें । किम ने कुछ विनय-पूर्वक कहा। दयाराम के दिल में बात बैठ गई। उन्होंने दो लोधों को रख पाने की आज्ञा दे दी। बेहोश सुधुआ के साथ बंकिम डेरे से चला गया। "मालिक, अभी तक झमेले में मुझे याद न थी।" एक सिपाही ने कहा। "क्या ?" दयाराम ने हँसती आँखें उठाकर देखा। "आज यह बारा से गहर-भर श्राम खुद लादकर सुधुश्रा के घर लाए थे। "अच्छा!" "हाँ मालिक "क्यों जी देवीदयाल, ( देवीदयाल गाँत्र के एक गण्य ब्राह्मण हैं।) यह क्या बात है?" "अब क्या कहा जाय मालिक ?" दूर मर्म तक ध्वनि को पहुँचाकर देवीदयाल हँसने लगे। वे दोनो लोध सुधुआ को छोड़कर लौट आए। इनसे दया- राम ने पूछा- क्यों रे, बाँके तुम लोगों के साथ गए थे, किधर गए ?" "वहीं उसको दवा-दारू का इंतजाम करने को रह गए हैं।” हाथ जोड़कर एक ने कहा । दूसरे ने 'हाँ मालिक' कहकर गवाही दी।