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लिली यह अभी खुद अपने मुख्तार नहीं हैं। इसी समझ और सहानुभूति के भीतर बंकिम ने आज भी आम ले जाने के लिये श्यामा को भेज देने को सुधुपा कहा । विनय-पूर्वक सुधुआ ने स्वीकार कर लिया। कहा, अभी पोसती है, उठेगी तो भेज दूंगा। बंकिम बारा चला गया। वहाँ दूसरे-दूसरे बालों में टह- लता हुआ लड़कों से पूछ-पूछकर अच्छे-अच्छे पेड़ों के श्राम खाने लगा। निगाह अपने बारा की तरक रक्खी। बड़ी देर हो गई। दूसरे बागों से वह अपने बाग में आ गया। उसके भैयाचार घर के लड़के आम बीनकर बाग से चले गए। और-और लोग भी धीरे-धीरे जाने लगे। क्रमशः बाग खाली हो गए। वंकिम बैठा श्यामा की राह देखता रहा। पर वह न आई। एक-एक बार गाँव के रास्ते की तरफ देखकर, अंत में हताश होकर बंकिम ख़ुद अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने को चला । तुख्मी सुनेदे का एक पेड़ खूब पक रहा था । चढ़कर एक डाल हिलाई । उतरकर आम बीन लिए । एक डाल तुमी दसहरी की हिलाई । कुछ शरवती के आम गिराए, कुछ शहाबादी के । धोती का छोर फैलाकर सब बाँध लिए। उसके ले जाने-मर को हलका खासा बोझ हो गया । धोती चोपी से भर गई । कुर्ते में भी दारा लगे। पर इसकी चिंता न की। कंधे पर रखकर ले चला। एक साधारण लोध किसान को इस तरह एक ब्राह्मण का आम ले