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श्यामा । तक खेतों को खब बनाया, खाद छोड़ी, जब खेत कुछ देने लगे, तब पर साल इन्होंने बेदखल कर दिया, पहले इजाफा लगान बीघा पीछे पाँच रुपए माँगते थे। अपने पास इतना दम न था। खेत छोड़ दिए । पर किसान जाय कहाँ, क्या खाय ? फिर उन्हीं जिसीदार दयाराम महाराज के पैरों नाक रगड़नी पड़ी। उन्होंने पाँच रुपए बीघे पर ढाई बीघे का एक खेत दिया। खेत बिलकुल असर है। मैं जानता था। पर लेना पड़ा। खेती न कर, तो महाजन उधार नहीं देता। भूखों मरा नहीं जाता। खेती में साढ़े बारह का पूरोपूर डाँड़ पड़ गया। कुछ न हुआ। एक बैल था, साझे में जोत लेते थे, वह भी मरा, इधर म्यामा की अम्मा थी, वह भी भगवान के यहाँ गई । परमात्मा ने सब तरफ से बैठा दिया। अफसोस-अफसोस मुझको भी दमा हो गया है। काम होता नहीं। उस किस्त किसी तरह पाँच रुपया चुकाया था। अब के कुछ भी डौल नहीं । बरखा आ गई । छप्पर वैसा ही रक्खा है । कहाँ से पैसे आवें, जो छा जाय ! मिहनत-मजुरी का बल नहीं है। स्यामा दूसरों की पिसौनी करती है, तब दो रोटी तीसरे पहर तक मिलती हैं।" बूढ़े सुधुआ को जोर की खाँसी आ गई। घर के भीतर चकी चल रही थी। जब सुधुआ सँभला, तब बंकिम उठकर खड़ा हो गया। ऐसी स्थिति में वह क्या कर सकता है, उसकी समझ में न आया। सुधुआ भी केवल करुणा प्राप्त करने के सिवा उससे दूसरी मदद न चाहता था। वह भी जानता था, 1