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४६ लिली फिर खाई की ओर चल दी। बंकिम खड़ा देखता रहा, वह खाई पार कर गाँव को चली गई। (३) सुबह को दूसरे दिन धारा जाते समय द्वार पर ही सुधुभा बंकिम को मिला । पालागन कर आमों के लिये बार-बार विनय-पूर्ण प्रशंसा करने लगा कि बड़े मीठे आम कल उसके बारा के उसने खाए, ईश्वर करे जल्द उसका विवाह हो, घर वहू आए । सिलसिले में यह भी उसने कहा कि अब के तंग-- दस्त रहने के कारण वह आम मोल नहीं ले सका, नहीं तो बंकिम के बाग की बगल में हो शक्लों के हजारे' में वह कई साल तक एक रुपए का हिस्सा लेता रहा है। इतनी बात के बाद उससे कुछ बातचीत करना बंकिम का फर्ज हो गया। उसने पूछा कि इस साल वह संगदस्त क्यों हो गया, और इससे छुटकारा पाने को वह कुछ कर रहा है या नहीं। किसान अपने दुःख की बात बड़े करुण साहित्यिक ढंग से कहते हैं, यदि कोई सहृदय श्रोता मिल जाय । सुधुआ खड़ा था। वकिम को बैठने के लिये चारपाई डालकर एक बराल जमीन पर बैठ गया। हथेली से अपना सिर पकड़कर, कुछ खाँसकर, सँभलकर' बोला-"महाराज, पाठ रुपए बीघे के हिसाब से जिमीदार दयाराम महाराज ने तीन बीघे खेत दिए थे। मैंने कई साता