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लिलो " भी रात के गिरे आम बीनकर, पकते पेड़ों को हिलाकर, हिस्से लगाकर, अपना हिस्सा लेकर पड़ोसियों, हिस्सेदारों के साथ चले गए, बंकिम बैठा सोचता रहा। मधुर-मधुर हवा के झोंके से चेतना आने पर पलकें खुली, तो देखता है, आकाश और पृथ्वी की सजल श्यामलामा के भीतर, वर्षा की ही नवयौवना स्वस्थ श्याम प्रतिमा-सी, एक युवती- बालिका, धीरे-धीरे, असंकुचित मुस्किराती हुई, उसकी तरफ श्रा रही है। बंकिम प्रतीक्षा करने लगा, मन में खोजकर देखा, वह उसे पहचानता नहीं-आवाज आई । बालिका वकिम के बिलकुल पास मा गई, और निस्संकोच वैसे ही बोली-'तुम कहो, तो इधर के गिरे हुए आम विन लूँ।" . उसके चेहरे की ओर देखकर, उसे गरीब किसान की लड़की जानकर वंटिम ने कहा-"बिन लो।" बालिका धीरे-धीरे चल दी। चार कदम चली थी कि ए-.' पुकारकर बंकिम ने पूछा- "तेरा नाम क्या है ?" बंकिम की इस बेवकूफ़ी पर शहर के अहमकों की हेकड़ी- वाली सुनी कुछ बातें एक साथ उसे याद आ गई। मन-ही-मन हँसकर, बंकिम को क्षमा कर बोली- मेरे घर के सामने से तो रोज आते हो, मेरे बाप को नहीं जानते क्या ?" कहकर द्रुत लाज के पग एक पकते पेड़ के नीचे जा आम बीनने लगी। बंकिम को उसका यह वाक्य पूरा रहस्यवाद ऊंचा। उसका C