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. लाख धोने पर घोड़े नहीं बन सकते। इसलिये अब अपना परिवार लेकर भलग रहो।" लाचार होकर पं० रामचंद्रजी को अलग होना पड़ा। गाँव में जहाँ उनके प्रबल प्रताप से सभी वर्ण काँपते थे, जिसके मकान में वह पानी पी लेते थे, वह अपने को कृतार्थ, इंद्र- तुल्य समझता था, उन्हीं बाजपेयीजों के लिये किसी शूद्र का पानी छू लेना दुश्वार हो गया। इतने अपमान से यह गाँव में न रह सके। अपने पुत्र चथा परिवार के साथ पुनः कानपुर चले गए । दंगे के कारण बहुत दिनों तक व्यवसाय बंद रहा। लड़की जवान हो चुकी थी, और भैयाचार छोड़ चुके थे। पता लगाकर विवाह करनेवाले कनवजिए फँस नहीं सकते, इस विचार से एक दिन राजकिशोर के यहाँ गए । बातचीत से मालूम हुआ, वह अभी कुँवारा है, और गोपाल का विवारी, उनसे कुछ ही हेठा पड़ता है। पर ऐसे विवाह दोषवाले नहीं कहलाते । यह सोचकर वाजपेयीजी ने राजकिशोर से उसके अभिभावक को पूछा। राजकिशोर ने पूछने का कारण पूछा। वाजपेयीजी ने कहा-"तुम्हारा विवाह अपनी लड़की से करना चाहते हैं, रमा कहता है कि बहन को उन्होंने बचाया है, अब उन्हीं से उसका विवाह कर देना ठीक होगा।" राजकिशोर ने कहा-"विवाह की बातचीत मेरे अभिभावक पछी कर लेंगे, भापको दिक्षत न होगी, पर आप रमाशंकरजी