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१० लिली दिका कुमारी सुशीलादेवी को साथ लिवा लाई-"यह हैं। देखो, पतिदेव के पिताजी ने विना अपराध परित्याग कर दिया। चिरंजीव पुत्र की दूसरी शादी कर दी।" परिचय दिया। सुशीला बैठ गई। वेदवती खड़ी रही। "तुम्हारी बातें एक नोट के रूप में महिला' में दे दू"" सुशीला ने राय ली। "नहीं।" "ये सब बुरे संस्कार हैं, बहन, इन्हें दूर करने की कोशिश ही हमारा धर्म होना चाहिए।" "पर ये मेरी तरफ के बुरे संस्कार नहीं , लिखने के लिये कहने पर साक्षी बनकर मेरी तरफ के ठहरेंगे। मैं ऐसा नहीं चाहती।" "पर मेरा धर्म भी एक है।" "उसके लिये मुझसे आप राय क्यों लेती है ? अगर आप लिखेंगी, तो मापसे मेरा विनय-स्नेह उठ जायगा। क्योंकि.. भाप मेरे संबंध में मेरी मर्जी के खिलाफ कार्रवाई करेंगी।" सुशीला एकटक देखती रही । वेदवती भी स्थिर खड़ी सुनती रही। कमला अपने ही विचारों की लय में मौन बैठी और दृढ़ होती रही। "अच्छा, फिर मिलू गी, मुझे पाठशाला जाना है।" कहकर वेदवती चली, साथ-साथ सुशीला भी गौर करती हुई चली गई।