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लिली रमाशंकर के होश उड़ गए, कुछ देर सोचकर पूछा- "इसका कोई कारण भी है ?" "हाँ, बिक्षा कराने पर भैयाचार और नातेदार छोड़ देंगे। बहुत बड़ी बात है। घर चलकर मालूम कीजिए।" रमाशंकर एक पेड़ की तरफ कुछ कदम बढ़ गया, कहा- "तुमको जो कुछ मालूम हो, कहो।" नाई ने मुँह बनाकर कहा- -"भैया, अब घर में सब समझ लीजिएगा। बड़े घरों की बात कौन कहे ?" रमाशंकर का दिल बैठ गया, फिर अदम्य आग्रह से भर गया। उसने कहा-"हम कहते हैं, संकोच छोड़कर कहो।" नाई लाचार, चमोन पर नजर गड़ाए कहने लगा-"कल यहाँ के कुछ लोग, इन्हीं के भैयाचार, गाँव गए थे। जगनू बापू, रामकिशोर चाचा, भगवानदीन दादा वगैरह ( ये सब रमाशंकर के भैयाचार हैं, जो जुदा रहते हैं) को अलग बुलाकर कहा है कि लड़की काम की नहीं है। कानपुर में किसी मुसलमान..." रमाशंकर क्षोभ से काँपने लगा। कमला पर क्रोध आ गया। नाई कहता गया-"अब भैयाचार, नातेदार, सबको मालूम हो गया है। सबको राय है कि आप चले चलें, फिर जैसा होगा, किया जायया । आपकी सास का चाल-चलन अच्छा नहीं, न मायके में अच्छा रहा। सब भैयाचार छोड़े हुए हैं।" रमाशंकर सोचता रहा। विषय कोई न था, केवल चिंता