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कमला कमला का संकोच दूर कर दिया। प्रणय का मौन स्पर्श दोनो के हृदय को पुलकित करता रहा । भाषा आप बंद हो गई, जैसे शकि की चंचलता हो। मौन स्थिति में रहने की अनिच्छा या परिवर्तन ने छोनो को सृष्टि की चपलता-वाक्य-कलाप, केलियों में उभाड़ दिया। 3 अनेक बातें हुई, अनेक विखल परिणय-प्रसंग छिड़े, रमाशंकर की उतनी बड़ी विद्वत्ता ने कमला को वार्तालाप की बराबर जगह दी, और निस्संकोच कमला उसके समान ही वाक्पटु रही! वह रात दोनो को जागते, तरह-तरह गपशप लड़ाते हुए कदी । वह जागरण की रात्रि भविष्य के जीवन की चिर-स्मरण- रात्रि बन गई। चिड़ियों की चहक सुनकर दोनो ने देखा, राम पार हो रही है। कमला के हृदय में रमाशंकर का कहा हुआ एक वाक्य हमेशा के लिये रह गया-"तुम्हारे विना मेरे जीवन का अर्थ ही क्या " उसी रोज दिन में करीब ग्यारह बजे एक नाई रमाशंकर के पास खबर लेकर पहुँचा ! एकांत में बुलाकर कहा-"चुप- चाप चले चलिए । मालिक ने कहा है, बिदा कराने की जरूरत नहीं, और इसी दम बुला भेजा है।"