यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लिली के रत्नाकर ने मात्र ही विष्णु को लक्ष्मी दी, लक्ष्मी को विष्णु - कमला ने जल-भरा ढक्कनदार लोटा और गिलास रस्त्र दिया । डिब्बे से निकालकर रमाशंकर को पान दिए । पलकें झुकाए पलंग के एक ओर खड़ी रही। जहाँ कमला का यथार्थ स्थान था--रमाशंकर का स्नेहमय प्रदेश-वहाँ से उस प्रांत में जहाँ रसाशंकर कमला की स्मृति में चमक रहा था, प्रति- ध्वनि हुई-“बैठो।" स्वप्न-संचलित कमला पैरों की तरफ बैठ गई, दबाने के लिये अपनी तरफवाला दाहना पैर पकड़ लिया, दबाने लगी । झरोखे से चाँद सीधे मुख पर पड़ रहा था, तमाम पलंग चाँदनी से जगमग । कमला पैर दबा रही है, रमाशंकर एकटक उस अर्द्ध स्फुट कली की नवल मुख-कांति पान कर रहा है। प्रति शिरा एक नए जीवन से मजबूत, उसे अपनी ही दृढ़ता से स्खलित कर दूर, बहुत दूर, सौंदर्य के उस अपरिचित लोक में पतंग की तरह खुड़ा ले गई। आज तक के बंद अनेक रहस्य-द्वार उस किरण- मयी के सौंदर्य के जादू से गुलशब्बो की तरह खुल-खुल गए । उसी के प्रकाश से पथ देखता हुआ वह वहाँ-वहाँ हो पाया। कमला को थकी हुई जान यथासमय रमाशंकर उठकर बैठ गया ! बड़े स्नेह से हाथ पकड़ चाँद की तरफ बैठा लिया। पैर लटकाए, मुक्त-ज्योत्स्ना-कलित अकल आकाश देखते हुए, एक दूसरे का हाथ लिए दोनो चुपचाप बैठे रहे। खुले हुए हृदय ने