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कमला ४१ गए । विवाह हो जाने पर जाजपेयीजी से शिकायत करने की शाक लगाए बैठे थे। सोचा था, कमला का जीवन धरबाद कर रात एक पहर बीत चुकी । पंडित रमाशंकर भोजन कर चुके । ऊपर के कोठे पर पलंग मिला दिया गया था, वहीं लेटे हुए हैं। कमला की माता और कमला का भी भोजन हो चुका। कमला को अनेक प्रकार की सीख दे, पान और पानी लेकर पति की पद-सेवा के लिये भेजकर, ईश्वर-मरण करती हुई माता नीचे अपनी चारपाई पर लेट रहीं। कमला के मन में माता की शिक्षा, मस्तिष्क में पति-सेवा, आँखों में एकनिष्ठ अचल ज्योति, होठों पर लाज से मधुर मंद मुसकान-कपोलों तक चक्राकृति फैलती हुई, आत्मा में मृदु प्रणय-भय, पदों में भूषणों का विजय-शिंजन । जीने की एक-एक कली पर पैर रखती, रति की मधुर झंकृति रमाशंकर के भीतर एक-एक कमल खिला देती है। आकाश के चाँद का फूल पृथ्वी पर ज्योतिर्मय परिमल भर रहा है। कोठे के झरोखों से किरण, अदृश्य अप्सराओं- सी, दो सुहृदों को प्राथमिक प्रशय के हद पाश में बँधते हुए देखकर हँसती हुई चली जाती हैं। हवा नीम के फूलों की भीनी महक से दोनो को मौन स्नेह में ढककर बह रही है।