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ज्योतिर्मयी ३७ दुःख, कितना कष्ट, मुझे और अपने इस अधम मित्र को सुखी करने के विचार से स्वीकार किया ! १८ हजार खर्च किए ! तुम्हारे मैनेजर-सत्यनारायण-मेरे कल्पित पिता-वह देव- ताओं का निर्मल परिवार ।" ज्योतिर्मयी मन-ही-मन और कितना, न-जाने क्या-क्या, सोच रही थी। विजय ने पूछा-"तुम वहाँ कैसे गई ?" "वीरेंद्र से पूछना । ज्योतिर्मयों ने कहा । ज्योतिर्मयो मिश्र-खानदान में मिल गई है। पर वीरेंद्र फिर विजय से नहीं मिला। wew